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शहीदों का खून रंग लाया जिस सरकार के राज्य में सूरज कभी नहीं डूबता था ऐसी शक्तिशाली साम्राज्यवादी सरकार भी आखिर निहत्थे भारतवासियों के सामने झुक गई। 15 अगस्त का पावन दिन आया। परतंत्रता की काली रात्रि समाप्त हुई और स्वतंत्रता का नव प्रभात निकला। भारत माता अपने सौभाग्य पर एक युग के बाद हंस उठी।

यह दिन भारतीय जीवन का मंगलमय दिन बन गया। भारत के राजनीतिक इतिहास का तो एक स्वर्णिम दिन है। भारत स्वतंत्र हो गया। लेकिन अभी उसके सामने देश के निर्माण का काम था। यह काम धीरे-धीरे हो रहा है।

खेद की बात है कि इतने वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी भारत अपने सपने को साकार नहीं कर पाया। इसका कारण वैयक्तिक स्वार्थों की प्रबलता है। दलबंदी के कारण भी काम में विशेष गति नहीं आती। हमारा कर्तव्य है कि देश के उत्थान के लिए इसकी ईमानदारी का परिचय दें। प्रत्येक नागरिक कर्मठता का पाठ सीखे और अपने चरित्र, बल को ऊंचा बनाए।

जनता एवं सरकार दोनों को मिलकर देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करना है। युवक देश की रीढ़ की हड्डी के समान है। उन्हें देश का गौरव बनाए रखने के लिए तथा इसे संपन्न एवं शक्तिशाली बनाने में अपना योगदान देना चाहिए। राष्ट्र की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि हम सांप्रदायिकता के विष से सर्वथा दूर रहें। सभी निज संस्कृति के अनुकूल ही रचे राष्ट्र उत्थान।

स्वतंत्रता का मंगल पर्व इस बात का साक्षी है कि स्वतंत्रता एक अमूल्य वस्तु है। अनेक देशभक्तों ने भारत के सिर पर ताज रखने के लिए अपना उपसर्ग कर दिया है। इस दिन हमें एकता का पाठ पढ़ना चाहिए और देश की रक्षा का व्रत धारण करना चाहिए-

हर पंद्रह अगस्त पर साथी, हम सब व्रत धारें।
जननि जन्मभूमि की खातिर, अपना सबकुछ वारे।
आजादी आ तुझसे आज दो-दो बातें कर लें।
जो मिटे तेरी डगर में, आज उनको याद कर लें।

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